Wednesday, April 17, 2024

टीरियन की चेतावनी

मेरे एक मित्र हैं आदरणीय टीरियन यादव जी। उन्हीं के सम्मान में उनको समर्पित यह पैरोडी लिखी है।
इसकी भूमिका केवल इतनी है कि एक दिन अत्यधिक नशे की हालत में टीरियन भैया, वर्षों पूर्व भ्रमजाल के वशीभूत होकर दान किये गये अपने पांच सौ रुपयों के बदले अद्धा मांगने, एक पार्टी के मुख्यालय जाते हैं जहां उनको आदरणीय लोकनायक मिलते हैं जो कि अद्धा देने से मना कर देते हैं क्योंकि वो कटुआ ईमानदार हैं।

कविता प्रारंभ होती है:-

वर्षों तक गांव में घूम-घूम,
सब्जी फसलों को चूम-चूम,
खा घी मक्खन दही दूध,
टीरियन यादव गये ऊब।
सौभाग्य ना सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।

दारू की राह बताने को,
सबको ठेके पर लाने को,
कंजर को समझाने को,
निश्चित जेल बचाने को,
टीरियन पार्टी मुख्यालय आये,
बेवड़ों का संदेशा लाये।

दो दारु अगर तो अद्धा दो,
पर उसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो गांजा पांच ग्राम,
रखो अपनी सत्ता तमाम।
हम वहीं खुशी से सुलगायेंगे,
कहीं नाली में लुढ़क जायेंगे!

कंजर वो भी दे ना सका,
दुआ बेवड़ों की ले ना सका,
उल्टे, भैया को भरमाने चला,
एक यादव को समझाने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

भैया ने भीषण हुंकार किया,
अपनी भौहों का विस्तार किया,
डगमग-डगमग भैंसें डोलीं,
फिर निकली टीरियन की बोली-
तू मुझे क्या आंख दिखाता है,
एक यादव को क्यों समझाता है?

यह देख सरकार मुझमें लय है,
सारा अधिकार मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है बिहार सकल।
जातित्व फूलता है मुझमें,
अज्ञान झूलता है मुझमें।

पाटलिपुत्र मेरा दीप्त भाल,
चम्पारण वक्षस्थल विशाल,
भुज छपरा-आरा को घेरे हैं,
दरभंगा-सीवान पग मेरे हैं।
दिपते जो गया पूर्णियां शिवहर,
सब हैं मेरे दिल के अंदर।

दृग हों तो ये कटिहार देख,
मुझमें सारा बिहार देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
सब मुझसे ही दूध ले जाते हैं,
फिर पैसा भी दे जाते हैं।

दिनभर भैंसों संग रहता हूं,
सुख-दुख सब उनसे कहता हूं,
फिर भी समझ ना पाईं वो सब,
मैं क्या बड़बड़ करता रहता हूं,
बातों में मत उलझा इन्हें,
हां हां कंजर समझा इन्हें।

मिल नहीं रही वो बेल देख,
झारखंड की वह जेल देख,
यह देख लालू का आदि-सृजन,
यह देख चारा घोटाले का रण,
कैदियों से भरी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहां तू है।

पार्टी में बैठे वाचाल देख,
पार्टी का गंतव्य पाताल देख,
जनता का हाल बेहाल देख,
मेरा स्वरूप फटेहाल देख,
सब पैसा मुझी से पाते हैं,
फिर मुझपे ही गुर्राते हैं।

जिह्वा से कढ़ती गाली सघन,
सांसों में दारु की गंधयुक्त पवन,
हो जाता मेरा फेस जिधर,
चरने लगती है भैंस उधर,
मैं जब भी मूंदता हूं लोचन,
कुर्सी को तरसते नेतागण।

भरमाने मुझे तो आया है,
बुद्धि बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे भरमाना चाहे मन,
पहले तो समझा वैशाखनंदन,
भैंसों को चरा ना सकता है,
वो मुझे डरा कब सकता है?

हित-वचन नहीं तूने माना,
फाइनेंसर का मूल्य ना पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूं,
अंतिम संकल्प सुनाता हूं,
मैं तुझसे बहल ना पाऊंगा,
तुझे निश्चित जेल भिजवाऊंगा।

ईडी सीबीआई रोज बुलायेगी,
एनआईए अलग प्लान बनायेगी,
लोग एक दूसरे पर चिल्लायेंगे,
सारे बेवड़े तुझको गरियायेंगे,
कंजर! जेल ऐसी होगी,
कभी सोची नहीं वैसी होगी।

एक-एक को अंदर ठूसेंगे,
कभी बेल पर भी ना छूटेंगे,
विरोधी सारे सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे,
आखिर तू तिहाड़शायी होगा,
घोटाले का पर, दायी होगा।

था मुख्यालय सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े,
केवल दो जानवर ना अघाते थे,
गैंडा-कागराज सुख पाते थे,
कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय,
दोनों पुकारते थे "जय-जय"।

- रामधारी सिंह "यादव"

Thursday, March 28, 2024

हिरासत से सन्देश

मेराज फ़ैज़ाबादी साहब की एक बड़ी मशहूर ग़ज़ल है - "चराग़ अपनी थकन की कोई सफ़ाई न दे"
उसी की पैरोडी लिखने की कोशिश की है हालिया राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए

प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत से सड़जी कह रहे हैं -

     पेंचकस मेरी दारुनीति की कोई सफ़ाई ना दे
     वो तीरगी है कि कोई ख़्वाब तक दिखाई ना दे

     हिरासत में भी ना जागे गुनाह का एहसास
     मिरे वजूद को इतनी भी बेहयाई ना दे

     बहुत सताती है हर रात जो हिरासत में गुज़रती है
     खुदा किसी को भी ऐसी पुलिसिया ठुकाई ना दे

     मैं सारी उम्र तिहाड़ में ही काट सकता हूं
     मेरे ठेकों को मगर सप्लाई पराई ना दे

     अगर यही तिरी दुनिया का हाल है जज साहब
     तो मेरी क़ैद भली है मुझे रिहाई न दे

     मैं सत्तू हैंडसम और संजू संग नीचे ही लेट जाऊंगा
     तिहाड़ में मुझ कट्टर ईमानदार को चारपाई ना दे

     दुआ ये मांगी है सहमे हुए मुख्यमंत्री ने
     कि अब किसी को खुदा कट्टर बेगुनाही ना दे

     - निखिल वर्मा


टीरियन की चेतावनी

मेरे एक मित्र हैं आदरणीय टीरियन यादव जी। उन्हीं के सम्मान में उनको समर्पित यह पैरोडी लिखी है। इसकी भूमिका केवल इतनी है कि एक दिन अत्यधिक नश...