Thursday, November 9, 2023

उम्मीद

कितना छोटा सा शब्द है ना!
इसी छोटे से शब्द ने न जाने कितने प्रकार के जीवों के जीवन के किन किन स्तरों के अनगिनत पलों की असीम भावनाओं को जागृत रखा है, उनको जीवन व्यतीत करने का संबल प्रदान किया है।
एक प्रचलित वाक्य है कि "उम्मीद पर दुनिया कायम है।" और इस वाक्य की व्यापकता का अंदाजा इसी से लग जाता है कि हमें चाहे अगले पल की खबर ना हो पर ख्वाब कई वर्षों के देख लेते हैं। 
हरेक को कुछ न कुछ उम्मीदें होती हैं। जी हाँ बहुवचन, क्योंकि शायद ही कोई हो जिसकी कोई एक उम्मीद हो। वक्त और परिस्थितियों की वजह से किसी खास पल में किसी उम्मीद की महत्ता घट या बढ़ सकती है। 
एक उम्मीद शायद ऐसी है जो सभी की एकसमान है और वो है - हर दिन पहले से कुछ बेहतर की उम्मीद।

अस्पताल में भर्ती अपने किसी परिजन के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करता कोई इंसान हो या घोंसले में अपनी माँ के दाना लेकर पहुँचने का इंतजार करते चिड़िया के बच्चे, अपने प्रियतम अथवा प्रेयसी के मैसेज या कॉल का इंतजार करते स्कूल-कॉलेजों के उच्छृंखल बच्चे हों अथवा अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए अपनी रातें काली करते विद्यार्थी, शेयर बाजार के उतार चढ़ाव पर पैनी निगाह टिकाये कोई व्यापारी हो अथवा मजदूरी के पैसों से अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने को दृढ़संकल्पित माँ-बाप, ऐसे तमाम तरह के उदाहरण में सबको एक उम्मीद होती है कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा, उनकी कल्पनाओं को पंख लगेंगे और उनका ख्वाब सत्य होगा।

कल्पनाओं के अंदर ही एक संसार बसा उसको जीने की लत होती है सभी को। विरला ही कोई होगा जो इस मायाजाल से बचा होगा। पर कल्पनाओं को जीने वालों को ये आभास नहीं होता कि सबकुछ हू-ब-हू वैसा नहीं होता है जैसी उन्हें उम्मीद होती है। और उम्मीदें जब टूटती हैं तो इंसान क्षणिक ही सही पर कुछ समय के लिए अवसाद में चला जाता है। उम्मीदों का टूटना उन भावनाओं की मृत्यु के समान होता है जिन भावनाओं के वशीभूत हो हम अपनी कल्पनाओं का संसार गढ़ते हैं। उन भावनाओं की लाश पे खड़े हो हम अवलोकन करते हैं कि कहाँ क्या गलत हुआ जो संसार बिखर गया। कई बार हमें जवाब मिलता है और कई बार नहीं भी मिलता। तत्पश्चात हम पुनः अपने ख्वाब एक नये सिरे से बुन इस बार सबकुछ अच्छा होने की उम्मीद लगाते हैं। ये चक्र चलता रहता है।

कुछ पल ऐसे आते हैं जब हम अपने आप से पूछते हैं कि ये सब जो भी हो रहा है क्या हो रहा है और क्यों? रोते बिलखते या हँसते खिलखिलाते जिंदगी तो कट ही जायेगी पर शायद हमारी उम्मीदें कभी पूरी ना होंगीं क्योंकि हम उम्मीद ही इतनी बड़ी करते हैं। हालांकि कुछ पूरी भी होती हैं पर अधिकतर नहीं।
हर नई उम्मीद के टूटने पर रोते बिलखते हम दुबारा उम्मीद करते हैं सब अच्छा होने की और स्वयं को सांत्वना देते हैं कि - होता है...चलता है... यही तो दुनिया है... 😊