Thursday, September 14, 2023

एंकर्स और बहिष्कार का बवाल




कब से एक टुच्ची सी लिस्ट पर बवाल काट रहे हैं। ऐसा लगता है किसी ने रोजी रोटी छीन ली है। क्या हो गया अगर लिस्ट जारी कर कुछ एंकर्स से पार्टियों ने किनारा कर लिया तो? आपका शो पार्टी कार्यकर्ताओं से चलता था या मुद्दों से? वो मुद्दों पर अपनी पार्टी का पक्ष रखने आते थे। अब नहीं आयेंगे।

इतनी सी बात का बवाल बना दिया है। सारे लगे पड़े हैं। आपके पास मुद्दों की कमी हो तो बताओ, हजारों खबरें तो आपलोगों द्वारा शो में कुत्तों की तरह लड़ते प्रवक्ताओं को दिखा टीआरपी बटोरने की बलिवेदी पर इस आस में टकटकी लगाये प्राण त्याग देती हैं कि शायद कभी कोई हमारी सुध लेगा, पर नहीं।

कितने चैनल के एंकर दिखे जो लगातार लगे पड़े हैं। ट्वीट पे ट्वीट किये जा रहे हैं जैसे किसी ने इनके सर से छत छीन ली हो। जो लिस्ट में हैं वो भी और जो नहीं हैं वो भी। आपलोग मीडिया की ताकत क्यों भूल रहे हैं? आपके लिये जितना जरुरी ये प्रवक्ता हैं उससे कहीं अधिक पार्टियों के लिए मीडिया।

कितने चैनलों की ओर से बयान आया है कि हमारे एंकर्स का बायकॉट गलत है या कितने चैनलों के मालिक इसके विरोध में आये हैं? क्यों नहीं आये? क्या कारण हो सकता है? उनको अपने चैनल की टीआरपी की चिंता नहीं? सारी चिंता एंकर्स की है? चैनल की पॉलिसी एंकर्स बनाते हैं? फिर बवाल काहे?

और एंकर्स का बहिष्कार कोई नई बात है क्या?
चैनल तक का बहिष्कार हुआ है। क्या भाजपा ने एनडीटीवी का बहिष्कार नहीं किया था? क्या एनडीटीवी बंद हो गया? बीच में कांग्रेस ने प्रवक्ताओं को टीवी चैनलों से दूर रहने को कहा था कि नहीं? तब क्या शो नहीं होते थे?
खबरों की कमी नहीं है इच्छा की है।

आप दिखाना चाहें तो बहुत खबरें हैं। और ऐसा थोड़ी है कि चैनल का बहिष्कार हो रहा है। आपके शो के आगे या पीछे उसी चैनल में वही प्रवक्ता दूसरे एंकर के शो में खींसे निपोरते मिलेंगे। और ऐसे बेसिर पैर की बातें करने वालों के ना आने से ऐसी क्या आफत आ जायेगी? इनकी जगह किसी तटस्थ को रखिये।

किंतु वो सच में तटस्थ हो और सार्थक बातें करे। ये नहीं कि हम फलानी सरकार में तनख्वाह लेते थे तो उसके लिए नहीं बोलेंगे या वर्तमान में पैसा लेकर फील्डिंग कर रहे हैं। ऐसों को नहीं।
लड़ाई झगड़े और हो हंगामे की जगह जनता तक बात पहुँचेगी ये क्यों नहीं सोचते हैं।
कुछ वर्तमान सरकार के "काबिल" बने प्रवक्ताओं और दलबदलू प्रवक्ताओं का विजन  भी देखने मिलेगा कि इनको सचमुच नीतियों की व्याख्या करनी आती भी है या फलाने के नेतृत्व का ढोल बजाना भर जानते हैं? ये भी पता चलेगा कि सरकार की नीतियाँ क्या क्या हैं आगामी वर्षों के लिए। सचमुच आगामी वर्षों के लिए हैं या आगामी चुनाव मात्र के लिए।
जब विपक्ष से कोई होगा नहीं तो सरकारी प्रवक्ता हर समस्या दूसरे के मत्थे मढ़ बच नहीं पायेंगे। ना ही बीच में मुद्दा भटका कोई राजनीति कर पायेंगे। 
पता नहीं हंगामा क्यों मचा है?

2 comments:

  1. वाह, बहुत बढ़िया लिखा हैं आपने। जहा तक मैने देखा है समाजवादी वाले तो साल 2 साल टीवी न्यूज चैनलो पर आना ही बंद कर दिए थे।
    क्या इनके बिना चैनल बंद हो गया?
    नही न लेकिन सोचने वाली बात है आज सत्ता में नही है तो ये टुच्ची लिस्ट जारी कर रहे है.. सत्ता में होते तो हिटलिस्ट ना जारी कर दे... बाकी सोचने को तो बहुत कुछ सोचा जा सकता है.. आजकल सार्थक वार्तालाप जैसा कुछ नही रह गया है...!

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  2. वाह, बहुत बढ़िया लिखा हैं आपने। जहा तक मैने देखा है समाजवादी वाले तो साल 2 साल टीवी न्यूज चैनलो पर आना ही बंद कर दिए थे।
    क्या इनके बिना चैनल बंद हो गया?
    नही न लेकिन सोचने वाली बात है आज सत्ता में नही है तो ये टुच्ची लिस्ट जारी कर रहे है.. सत्ता में होते तो हिटलिस्ट ना जारी कर दे... बाकी सोचने को तो बहुत कुछ सोचा जा सकता है.. आजकल सार्थक वार्तालाप जैसा कुछ नही रह गया है...!

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